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मुजफ्फरनगर में मरते लोग और नेताओं का विदेश भ्रमण

Antraal
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यह खबर अपने आप में निंदनीय है कि उत्तर प्रदेश सरकार के 17 मंत्री और विधायक विदेश में भ्रमण के लिए जा रहे हैं. एक ओर जहां मुजफ्फरनगर में राहत के लिए सरकार की तरफ से किसी भी तरह की मदद नहीं पहुंचा गई है, वहीँ भ्रमण पर खर्चा करना कहाँ तक सही है? समाचार पत्रों और टीवी समाचारों की माने तो दंगों के बाद से आज चार महीने बाद तक सरकार कि ओर से इन लोगों को किसी भी तरह की मदद नहीं मिली है, जो मदद वहां पहुंचाई जा रही है वह बाहरी लोगों द्वारा ही दी जा रही है. बच्चे मर रहे ठण्ड से मर रहे हैं, लोगों का भूख से मरने जैसा हाल है, सिर पर छत नहीं है. लोग तीरपालों के टेंटों में अपना जीवन पिछले कई माह से गुजार रहे हैं. वहीँ सरकार के नुमाईदे भ्रमण करने के लिए जा रहे हैं. इस बेतुकी बात का हवाला देकर की वहां जाकर उनका प्रतिनिधि मंडल जिसमें कई बड़े नाम भी हैं, अखिलेश यादव, आज़म खान, विधानसभा अध्यक्ष, विधान परिषद् अध्यक्ष और कई बड़े नाम उन देशों की राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन करेंगे. इनसे ये पूछिये की अपना शासन तो आप सही तरीके चला नहीं पा रहे हैं, वहां कि विदेशी प्रणाली को कैसे यहाँ लागू करेंगे. भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है, दबंगियों ने उत्तर प्रदेश को खोखला करने की ठान ली है और यह सब सरकार कि आँखों आगे हो रहा है, या कह सकते हैं कि सरकार ही करवा रही है.
सबसे बड़ा आश्चर्य तो तब हुआ जब दंगों के पीड़ितों को खुले में छोड़ ये सरकारी मेहमान वहां जाने को तैयार हो गए. मानवता को तांक पर रखकर, लोकतंत्र की मर्यादाओं का उल्लंघन करके ये पांच देशों के भ्रमण पर जा रहे हैं. क्या निकलेगा इनका परिणाम यह तो बाद की बात है. सबसे पहले तो ऐसा किया क्यों जा रहा उसपर विचार करने की अवश्याक्ता है. जहां सरकार के इन नुमाइन्दो को मुजफ्फरनगर में राहत पहुँचाने का काम करना था. वहां तो यह एक बार भी गए नहीं विदेश जा रहे हैं. अब यहाँ यह सवाल बभी खड़ा हो जाता है कि क्या इन लोगों को विदेशी भाषा समझ में आ जाएगी, जबकि खुद ही एक मीडिया कर्मी के सामने मुलायम सिंह ने कहा था कि हमारे नेताओं को अंग्रेजी का ज्ञान नहीं है, और संसद में भी हिंदी में कार्य करने की शिफारिश करने वाले मुलायम क्या भूल गए हैं अपनी कही बात को? जो इन मंत्रियों को अंग्रेजी में शासन प्रणाली और दूसरे देशों के सरकारी कामकाज को सीखने भेजा जा रहा है. क्या ये समझ पायेंगे उनकी प्रणाली को?
यहाँ हम आम आदमी पार्टी सरकार को नहीं भूल सकते हैं. जो प्रतीकात्मक ही सही, सादगी की एक मिसाल पेश कर रही है, माणिक सरकार को भी इस मामले में पीछे नहीं रखा जा सकता है. परन्तु उत्तर प्रदेश सरकार है कि सही जगह पैसे का व्यय न करके नेताओं की जीहुजूरी में करोड़ों का अपव्यय कर रही है. जिस पैसे को जनकल्याण के कार्यों में लगाना चाहिए उस पैसे का व्यर्थ के कामों में लगाया जा रह है.
आज़म खान कहते हैं कि यह एक स्टडी टूर है जिसके माध्यम से इन देशों की संसदीय प्रणाली का अध्ययन कर कुछ बेहतर पहलुओं को अपने राज्य में लागू किया जाएगा. साफ़ है कि यह एक सरकारी टूर है और इसपर सरकार कि और से बड़ा खर्चा किया जाएगा, वहीँ सपा के बड़े नेता और मंत्री रजा भैया का कहना है कि यह परिपाटी रही है, ऐसा होता आया है. दूसरे देशों के डेलिगेट्स हमारे देश में आते हैं और हम दूसरे देशों में जा रहे हैं. इसी के साथ एक बात कहते ही शक बढ़ जाता है कि यह किसी भी तरह का अध्ययन करने नहीं अपना भ्रमण के लिए इन देशों में जा रहे हैं. उनका कहना है कि जाने वाले हर विधायक और मंत्री ने अपनी जेब से पैसा खर्च किया. अब यहाँ सवाल खड़ा हो जाता है कि अपने पैसे क्या आप संसदीय प्रणाली का अध्ययन करने जायेंगे या कुछ और करने? जनकल्याण और मुजफ्फरनगर का मुद्दा तो यहाँ बहुत पीछे छूट गया है, इनके लिए तो जैसे उत्तर प्रदेश में कुछ हुआ ही नहीं है. जिन लोगों ने दंगों की मार झेली है उनसे पूछिये क्या बीतती है, भ्रमण पर जाने के अलावा यहाँ और भी बहुत से काम थे जो इन नेताओं को करने चाहिए, अरे भई अपनी संसदीय प्रणाली को जान लीजिये, लोगों के बीच पहचान बनाना तो सीख लीजिये, आम जनता की परेशानी को तो समझ लीजिये. तब जाइएगा विदेशी संसदीय प्रणाली का अध्ययन करने.
ये मामला तो तूल पकड़ चुका है, इसके अलावा एक और मामला है जो मुजफ्फरनगर की जनता के साथ पूरे देश को आहत कर रहा है और वो है सैफई महोत्सव. खबरों के माध्यम से मिली जानकारी कि माने तो सैफई अखिलेश यादव का पुस्तैनी गाँव है, जहाँ के लिए उन्होंने सरकारी खजाना खोल दिया है, पुरे प्रदेश में चाहे कहीं कुछ सुविधा हो या न हो यहाँ के हालात तो बताते हैं कि केवल यहीं विकास हुआ है, यहीं सारा प्रशासन लग गया है, साड़ी सुविधाएं यहीं के लोगों को मिलनी चाहिए. बाकी तो जायें भाड़ में, मुजफ्फरनगर के पीड़ित तो कहीं भी नहीं ठहरते. इस गाँव में हर वो सुविधा कि जा रही है जो शायद कहीं पूरे प्रदेश में होंगी, हैलीपैड से लेकर स्विमिंग पूल तक का निर्माण यहाँ किया गया, अब अंदाजा लगा लीजिये क्या क्या नहीं होगा यहाँ पर.
कुल मिलकर अगर कहें तो यहाँ के विकास के लिए सरकार बनने से आज तक खरबों रुपये खर्च किये जा चुकें है. अगर इसमें से कुछ पैसा इन दंगा पीड़ितों के पुनर्वास में लगा दिया जता तो शायद वो 40 बच्चे ठण्ड से नहीं मरते, लोगों को भूख के आगे सिर नहीं झुकाना पड़ता, औरतों की अस्मत से खिलवाड़ नहीं होता. हम तो पुर्नवास की बात कर रहे हैं यहाँ तो दंगों को रोकने के लिए ही कुछ नहीं किया बल्कि भीढ़ को भड़काने का काम हमारे प्रतिनिधियों ने किया जो दोषी हैं पर खुले घूम रहे हैं, और अब भ्रमण पर जा रहे है. वापस आकर फिर किसी दंगे को हवा देंगे और फिर किसी देश का भ्रमण. सिलसिला चलता रहेगा.

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