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हम माणिक सरकार को कैसे भूल गए

Antraal
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1998 से त्रिपुरा में माकपा दल के मुख्यमंत्री माणिक सरकार देश के पहले और सबसे गरीब मुख्यमंत्री हैं. सुनकर कोई भी अचरज में पढ़ जाएगा, मुख्यमंत्री और मजदूर जैसा जीवन, ऐसा कैसे हो सकता है? ये खबर ही अपने आप में आश्चर्यजनक है. अरे भई जिस देश में आज राजनीति को पैसा कमाने का मुख्य साधन मन जा रहा है, उस देश की राजनीति में 5000 रुपये भत्ता पाने वाला मुख्यमंत्री. अचम्भा तो होगा ही इससे पहले कभी नहीं सुना ऐसा, ये हुआ तो हुआ कैसे. जिस क्षेत्र पर आज हर इंसान के नज़र है, फिर वो चाहे अभिनेता हो, व्यापारी हो, विद्यार्थी हो, मजदूर हो, अमिर हो गरीब हो, समाज सेवक हो. जहां नेता बड़ा नेता बनना चाहता है बड़ा पड़ पाना चाहता है, जहां गरीब लोग आ तो सकते हैं पर गरीब रहते नहीं हैं कुछ ही दिनों में लक्ष्मी और कुबेर की अच्छी खासी कृपा उनपर हो जाती है. जो इससे पहले नहीं हुई थी वो कृपा अचानक ही होने लगती है. कुल मिलकर कहा जा सकता है कि आज हर आदमी राजनीति में आना चाहता है. मकसद समाज सेवा हो या न हो, पर राजनीति करना चाहता है. यह बताना चाहता है कि उसे देश की फिकर है. पर कुछ दिनों में उसे अपनी फिकर ज्यादा होने लगती है. उसे यह बात सताने लगती है कि बुढ़ापे में क्या करेगा, अभी कर ले जो कुछ करना है. अर्थात जहाँ हर आदमी पैसा कमाना चाहता है वहां एक ऐसा शख्स भी है जो सब कुछ होते हुए भी कुछ लेने को तैयार नहीं है, जिसके पास, जिसके सामने सबकुछ रखा उसे उठाने को तैयार नहीं है. माणिक सरकार एक ऐसे व्यक्ति हैं जो लम्बे समय से राजनीति में होने के बाद भी, राजनीति कहाँ मुख्यमंत्री होने के बाद भी एक सादगी भरा जीएवन जी रहे हैं. मुख्यमंत्री होने की जो तनख्वाह उन्हें मिलती हैं उसे भी वह पार्टी फण्ड के लिए दे दते हैं. तो उन्हें क्या मिलता है ये सवाल खड़ा हो जाता है. मिलता उन्हें भी मिलता है पार्टी की ओर से उन्हें 5000 रुपये महीने का भत्ता मिलता है जो आज कि महंगाई में एक आम आदमी के लिए भी नाकाफी है.

विधानसभा रिक्शे से जाते हैं एक गार्ड के साथ और पिछले लम्बे समय से ऐसा ही कर रहे हैं. परन्तु उनपर किसी की नज़र नहीं गयी, मीडिया तो दिल्ली में मानो गुम सी होकर रह गई है. दिल्ली की खबर खबर, बाकी खबर बेकार. दिल्ली में अगर किसी नए नेता को खांसी भी होती है तो मीडिया उस खांसी को जनता के घरों तक ले जाती है. आम आदमी को बने एक साल हुआ है और दिल्ली की सत्ता में आये अभी एक महिना भी नहीं हुआ. परन्तु आम आदमी का हर कदम एक खबर है. घर लिया या लेंगे तो किन बातों को ध्यान में रखकर. नहीं लेंगे तो क्यों नहीं लेंगे, लोग क्या कहेंगे. न जाने क्या क्या. परन्तु जो व्यक्ति 1998 से ऐसा ही जीवन जी रहा है, उसने न तो सरकारी घर लिया है, न गाडी ली है, न सरकार की तरफ से को सिक्यूरिटी की है. उस आदमी को मीडिया जैसे भूले ही बैठी है. और जो पार्टी एक माह से कम समय पुरानी सत्ता में आई है वो आज खबर है. केजरीवाल की बीवी कैसे बाज़ार जाती है, क्या खरीदती है, केजरीवाल कितने बड़े घर में रहता है. सब खबर. और माणिक सरकार जिनकी बीवी पैदल बाज़ार जाती है बीना किसी सिक्यूरिटी के उसे क्यों नहीं दिखाया जाता एक मिसाल के तौर पर. क्या केजरीवाल ही मिसाल हो सकते हैं. पुराने और गरीब नेता नहीं जिनके खाते में केवल 10 हजार रुपये से भी कम राशि है. क्या ऐसा दूसरे नेताओं के साथ भी है. क्या केजरीवाल के खाते में 10 हजार रुपये हैं. केजरीवाल की बात अगर न करें तो कोई एक ऐसा नेता बता दें जिसके खाते में आज 1000 हजार रुपये हो, जो केवल 5000 रुपये में अपना जीवन यापन करता हो. शायद ढूंढने से भी न मिले, और वो भी मुख्यमंत्री पद कोई नेता. हो ही नहीं सकता. हम गलत फहमी तो पाल सकते हैं पर सत्य तो यही रहेगा की आज कोई भी नेता करोड़ पति से नीचे की श्रेणी में नहीं आता. काला धन इसी धन को कहते हैं जो देश को धोखा देकर अपने खातों में जमा कराया जाता है.

यहाँ मीडिया साफ़ तौर पर ज़िम्मेदार है. एक ओर तो मीडिया को लोकतंत्र का रखवाला माना जाता है, वहीँ दूसरी ओर मीडिया आज रखवाला न रहकर पिछलगू बन गया है. जहां पैसा दिखता है उसी ओर चल देता है. मीडिया जानता है केजरीवाल की खबर दुनिया देखेगी, नया आदमी नया काम किया है, पर त्रिपुरा की खबर कौन देखेगा, कौन जानता है माणिक सरकार को, अगर खबर दिखाई भी जाती है एक पट्टी में नीचे कि ओर जो तेज़ी से निकल जाती है. आधी पढ़े बगैर ही. यहाँ ये ध्यान रखना बेहद जरुरी है कि अगर माणिक सरकार जो केजरीवाल के काम को बहुत समय पहले से ही अंजाम दे रहे हैं उन्हें मीडिया बेशक भूल जाए. देश और देश का विवेकी नागरिक उस महानुभव को कभी भी नहीं भुला सकता है. उसके लिए वह केजरीवाल के आगे आते हैं और एक मिसाल हैं उन सभी नेताओं के लिए जो राष्ट्रहित में आज भी काम करना चाहते हैं. और चुनौती हैं उनके लिए जो राजनीति को धंधा समझते हैं.

आज अगर अरविन्द दूसरे नेताओं के लिए उनके आइडल बन रहे हैं तो आप यह जान लीजिये कि अरविन्द से पहले आपके आइडल माणिक सरकार होने चाहिए. जो नि:संकोच देश हित के लिए अपने जीवन को अर्पित कर रहे हैं. जो आज युवाओं के लिए मिसाल हैं. उनके जीवन में बदलाव का एक उद्घोष हैं. जिन्हें देश में बड़े पैमाने पर सम्मानित किया जाना चाहिए. देश को उनके कार्य और समर्पण के लिए सलाम करना चाहिए. हम उस महान व्यक्तित्त्व को सलाम करते हैं

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